बुधवार, 1 सितंबर 2010

किस काम का काम

जी, काम-काम और काम। ऐसा काम भी किस काम का? कभी दो पल फुर्सत निकालें, खुद से मिलें, मित्रों से मिलें। दुनिया को देखें ...खुद को देखें...कहते हैं सब जीने के लिए कर रहे हैं। पर जीते कब हैं भाई? मध्यमवर्गीय इन्सान की यही करुण कहानी है...

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